पहले बांग्लादेश और अब हिंडनबर्ग, कहीं यह भारत को अस्थिर करने की बड़ी साजिश तो नहीं!

थोड़े ही दिनों में दो बड़ी घटनाएं हुई हैं, जिनका सीधा सम्बंध भारत से जुड़ा हुआ है। पहले बांग्लादेश में तख्ता पलट की घटना और फिर उसके बाद हिंडनबर्ग प्रकरण। क्या इन दोनों घटनाओं को एक करके जोड़ कर देखने की जरूरत है? ऐसा इसलिए कहा जा सकता है कि बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद वहां के हालात न तो वहां रह रहे हिन्दुओं के लिए अच्छे हैं और न ही भारत के लिए। बांग्लादेश में कट्टरपंथियों का कब्जा हो चुका है। उसके पूरी तरह से कट्टरपंथी हो जाने को भारत को चारों ओर से कट्टरपंथियों से घेर दिये जाने का बड़ा षड्यंत्र भी कहा जा सकता है। नेपाल जो कभी हिंदू राष्ट्र था आज कट्टरपंथियों की गिरफ्तर में है। हाल में वहां भी चीन के इशारे पर तख्ता पलट हुआ है। पहले यह देश भारत का समर्थक देश था, आज यह चीन की गोद में जा बैठा है। पाकिस्तान के बारे में कुछ न भी कहा जाये तब यह सर्वविदित है कि वह भारत का सबसे बड़ा दुश्मन और चीन का दुलारा देश है। श्रीलंका भले ही चीन के जाल में नहीं फंस रहा है, लेकिन चीन हाथ धोकर उसके पीछे पड़ा हुआ है। म्यांमार तो आज चीन की गिरफ्त में ही है।

बांग्लादेश अभी भी अशांत है। वहां अभी भी तनातनी चल रही है। इसी बीच एक बार फिर हिंडनबर्ग का मामला उछलना किसी गहरी साजिश की ओर संकेत करता है। बांग्लादेश की ताजा हालत के लिए पाकिस्तान, चीन और अमेरिका को जिम्मेदार माना जा रहा है। भारत में शरण लिए शेख हसीना ने भी उन्हें सत्ता से अपदस्त करने के लिए अमेरिका को ही जिम्मेदार ठहराया है। वहीं, हिंडनबर्ग भी तो अमेरिकी शोध एवं निवेश कंपनी है। हिंडनबर्ग ने इससे पहले अडाणी ग्रुप को जब अपना ‘शिकार’ बनाया था तो उससे उसका साम्राज्य ही हिल गया था। लेकिन शुक्र है कि वह फिर से सम्भल गया। हिंडनबर्ग ने एक बार फिर अडाणी को टार्गेट किया है। इस बार हिंडनबर्ग अडाणी ग्रुप को वह झटका नहीं दे सका, जिसकी कल्पना खुद इस निवेश कम्पनी यहां तक कि अडाणी के विरोधी भारत के विपक्षी दलों ने की थी। बस अन्तर इतना ही आया कि अडाणी ग्रुप के कुछ शेयरों में थोड़ी बहुत गिरावट आयी। लेकिन मानना पड़ेगा अपने देश के विपक्षी दलों को, कांग्रेस समेत इंडी गठबंधन अपने ही देश की अर्थव्‍यवस्‍था को लेकर आम जन में अविश्‍वास पैदा कर रहे हैं। जो भी हो, विश्व की तीसरी बड़ी अर्थ व्यवस्था बनने जा रहे भारत को कमजोर करने की विदेशी साजिश बहुत गहरी है। हिंडनबर्ग ने मार्केट रेगुलेटर सेबी की प्रमुख माधबी पुरी बुच पर अडाणी ग्रुप से मिलीभगत का आरोप लगाया है। भले ही फिर सेबी और अडाणी ग्रुप ने हिंनडबर्ग के सभी आरोपों से इनकार किया और यह सिद्ध करने के लिए कि हिंडनबर्ग ने जो बोला इसका कोई प्रमाण नहीं है।

हिंडनबर्ग रिसर्च पूंजी बाजार नियामक सेबी को बदनाम करना चाहता है, इसके बहाने वह भारत की अर्थव्‍यवस्‍था पर हमला कर रहा है। वह कभी गौतम अडानी को घेरता है तो कभी सेबी को, लेकिन जब पूंजी बाजार नियामक (सेबी) उसे इस तरह से झूठ फैलाने पर कारण बताओ नोटिस जारी करती है तो यही हिंडनबर्ग रिसर्च, जो अपने आप को एक बहुत बड़ा आर्थ‍िक विश्‍लेषक और शोध संस्‍थान मानता है, वह उसका जवाब तक नहीं देता। यानी कि आरोप लगाओ और भाग जाओ!

हिंडनबर्ग का मामला एक बार फिर से उभरा तो यही लगा कि विपक्ष के हाथ में एक बार फिर बटेर लग गयी है। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। विपक्ष ने इसे उछालने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, यहां तक कि उसने इसकी जांच जेपीसी से कराने की मांग तक कर डाली। शेयर मार्केट में हल्का भूचाल भी आया, लेकिन जिस तरह से शेयर मार्केट सम्भला है, वह अब विपक्ष के लिए किसी भूचाल से कम नहीं है।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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