क्या झारखंड में समय से पहले होंगे चुनाव! महाराष्ट्र, हरियाणा, जेके में एक साथ चुनाव की तैयारी!

Early elections in Jharkhand! Simultaneous elections in Maharashtra, Haryana, JK!

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विधानसभा में तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद विश्वास मत हासिल कर लिया है। हेमंत सोरेन की सरकार का कार्यकाल अब ज्यादा नहीं बचा हुआ है। अब सरकार जनता की योजनाओं के साथ आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी में जुट जायेगी। इस साल झारखंड समेत चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है। झारखंड, महाराष्ट्र, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर चार राज्यों में इस साल चुनाव होंगे। चारों राज्यों की राजनीतिक परिस्थितियों पर नजर दौड़ायें तो इनमें समानताएं नहीं हैं। झारखंड, महाराष्ट्र और हरियाणा में राजनीतिक मुद्दों पर चुनाव लड़े जायेंगे, फिर भी इन तीनों राज्यों के राजनीतिक मुद्दे अलग-अलग हैं। रही बात जम्मू-कश्मीर तो यहां किसी न किसी रूप में आज भी वहीं परिस्थितियां जिंदा हैं, जो अनुच्छेद 370 हटने से पहले थीं। इसलिए जब यहां पर चुनाव होंगे तो चुनाव आयोग के सामने सुरक्षा सबसे बड़ी चिंता होगी। हालांकि चुनाव आयोग लोकसभा चुनाव यहां सफलता पूर्वक चुनाव करा चुका है। फिर भी जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनाव कराना बड़ी चुनौती होगी।

2019 में झारखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव अलग-अलग समय पर हुए थे, लेकिन इस बार शायद चुनाव आयोग इन तीनों राज्यों के साथ जम्मू-कश्मीर में एक साथ चुनाव सम्पन्न कराये। अगर ऐसा होता है तो उम्मीद है इन चारों राज्यों में अक्टूबर से चुनाव आरम्भ हो जायेंगे। 2019 में महाराष्ट्र की 288 सीटों पर एक ही चरण में 21 अक्टूबर को मतदान हुआ था। वहीं, हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल 3 नवंबर 2024 को समाप्त होने वाला है। पिछला विधानसभा चुनाव अक्टूबर 2019 में हुआ था। झारखंड की बात करें तो यहां नवम्बर और दिसम्बर महीने में पांच चरणों में चुनाव हुए थे। लेकिन इस बार जो राजनीतिक परिस्थितियां बन रही हैं, उनमें शायद दूसरे राज्यों के साथ अक्टूबर महीने में ही चुनाव करा लिये जायें।

2019 में कैसी थीं राजनीतिक परिस्थितियां

महाराष्ट्र

शुरुआत महाराष्ट्र के चुनाव से करते हैं। महाराष्ट्र में 2019 में भारतीय जनता और शिवसेना ने मिल कर चुनाव लड़ा और सरकार बनाने के लिए स्पष्ट बहुमत हासिल किया, लेकिन आंतरिक संघर्ष के कारण शिवसेना ने एनडीए का साथ छोड़ दिया और कांग्रेस तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ एक नया गठबंधन बनाया जिसे महा विकास अघाड़ी नाम दिया गया। गठबंधन ने शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाकर महा अघाड़ी ने सरकार बनायी। लेकिन कुछ समय बाद शिवसेना में टूट हो गयी और एकनाथ शिंदे ने अलग शिवसेना बनायी जिसे बाद में मान्यता भी मिल गयी। एकनाथ शिंद आज महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री है और उन्हीं के नेतृत्व में एनडीए चुनाव भी लड़ेगा।

हरियाणा

90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा के लिए 21 अक्टूबर 2019 को हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और जननायक जनता पार्टी तथा सात निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर सरकार बनाई। भाजपा के मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री बने जबकि जेजेपी अध्यक्ष दुष्यंत चौटाला ने उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। इस विधानसभा के गठन से हरियाणा में कांग्रेस के 10 साल के शासन का अन्त हुआ।

झारखंड

2019 में झारखंड में झामुमो के नेतृत्व में कांग्रेस और राजद गठबंधन ने मजबूती के साथ चुनाव लगा। भाजपा अपनी सहयोगी पार्टी आजसू से अलग चुनाव लड़ी थी जिसका खमियाजा उसे भुगतना पड़ा था। जहां तक अकेले सबसे बड़ी पार्टी की बात है तो झामुमो ने 30 सीटें हासिल की और सबसे बड़ी पार्टी बनी। भाजपा 25 सीटें ही हासिल कर सकी। कांग्रेस की 16 सीटों की बदौलत गठबंधन की स्थिति काफी मजबूत रही और हेमंत सोरेन ने दूसरी बार मुख्यमंत्री की कमान सम्भाली।

जम्मू-कश्मीर

जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक परिस्थितियां दूसरे राज्यों से अलग हैं। जम्मू-कश्मीर में 2015 में चुनाव हुए और पीडीपी और भाजपा ने मिलकर सरकार बनायी। महबूबा मुफ्ती जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री बनीं। लेकिन 2018 में भाजपा ने पीडीपी से समर्थन वापस लिया और सरकार नहीं बन पाने की स्थिति में जम्मू और कश्मीर विधान परिषद को औपचारिक रूप से 16 अक्टूबर 2019 को समाप्त कर दिया गया था। उसके बाद जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के हटने के बाद राजनीतिक स्थितियां चुनाव कराने के अनुकूल नहीं थीं, इसलिए वहां पर चुनाव नहीं गये। अब स्थितियों में कुछ बदलाव आया है और यहां लोकसभा चुनाव भी हो गये हैं, इसलिए विधानसभा चुनाव की तैयारी की जा रही है।

2024 की क्या हैं राजनीतिक स्थितियां

महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में जिस विश्वास के साथ महा अघाड़ी की सरकार बनी थी, उसमें अब काफी कुछ बदल चुका हैं। यहां सिर्फ शिवसेना का ही बिखराव नहीं हुआ है, बल्कि शरद पवार की राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी भी बिखर चुकी है। राकांपा के अजित पवार ने अलग पार्टी बना ली है और वह एनडीए के खेमे में आ गये हैं। फिर महा अघाड़ी में बीच-बीच में किचकिच की खबरें आती रहती हैं। आज महाअघाड़ी उतने विश्वास में नहीं है, जितना अपने गठन के समय थी। ऊपर से देश में कांग्रेस की स्थिति सुधरने से महाअघाड़ी अब उस बार्गेन की स्थिति में नहीं है, जैसा पहले था। फिर भी राजनीतिक परिस्थितियां एनडीए के लिए भी अनुकूल नहीं हैं। पिछले पांच सालों में महाराष्ट्र में जो भी राजनीतिक उठापटक हुई है। उसका जनता के बीच अच्छा संदेश नहीं गया है। भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों को इस परिस्थितियों से भी जूझना है।

हरियाणा

हरियाणा में वर्तमान की राजनीतिक परिस्थिति उतनी अनुकूल नहीं है जितनी की पांच वर्ष पहले थी। हाल के दिनों में सरकार गिरने तक की नौबत आ चुकी थी, क्योंकि सहयोगी जेजेपी के तीन समर्थकों ने न सिर्फ अपना समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया था, बल्कि कांग्रेस ने वैकल्पिक सरकार बनाने की बाजाप्ता घोषणा भी कर दी थी। वर्तमान में हरियाणा में राजनीतिक उथल-पुथल का दौर चल रहा है। भाजपा और कांग्रेस दोनों जेजेपी विधायकों को अपने पक्ष में करने के लिए पूरा जोर लगाये हुए हैं। इसका प्रभाव अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेगा।

झारखंड

झारखंड में 2019 से बाद से राजनीतिक स्थितियां पूरी तरह से बदली हैं। राज्य में हेमंत सोरेन की सरकार बनने के बाद झामुमो के तेवर अब पहले वाले नहीं रहे हैं। राज्य में भाजपा अपनी उपस्थिति दिखाने का भरसक प्रयास तो कर रही है, लेकिन कई बार उसे बैकफुट पर भी रहना पड़ा है। जमीन घोटाले के मनी लॉन्ड्रिंग मामले में हेमंत सोरेन को पांच महीने जेल में जरूर रहना पड़ा है, लेकिन इन पांच महीनों में झामुमो ने अपने अस्तित्व को न सिर्फ बचाया, बल्कि पूरी मजबूती के साथ खड़ी भी हुई। अब जब हेमंत सोरेन जेल से बाहर आ गये और दोबारा मुख्यमंत्री बन कर विधानसभा में फ्लोर टेस्ट में पास भी हो गये हैं, अपनी चुनावी तैयारी को धार देने में लग जायेंगे। हां, यह बात जरूर है कि भाजपा पिछली गलती न दोहराते हुए इस बार अपनी पुरानी सहयोगी आजसू के साथ चुनाव में उतरेगी, उसका फायदा जरूर मिलेगा और यह उसने गिरिडीह के लोकसभा चुनाव में दिखा भी दिया है।

जम्मू-कश्मीर

जम्मू कश्मीर की समस्या राजनीतिक से ज्यादा ऐतिहासिक है। जम्मू-कश्मीर वह राज्य है जो भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित रहा है। इसका असर स्थानीय स्तर पर पहले भी था और आज भी है। तत्कालीन गृहमंत्री के प्रयासों से 1947. में कश्मीर का विलय भारत में हुआ। भारत की स्वतन्त्रता के समय महाराज हरि सिंह यहां के शासक थे, जो अपनी रियासत को स्वतन्त्र राज्य रखना चाहते थे। शेख़ अब्दुल्ला के नेतृत्व में मुस्लिम कॉन्फ़्रेंस (बाद में नेशनल कॉन्फ्रेंस) कश्मीर की मुख्य राजनैतिक पार्टी थी। कश्मीरी पंडित, शेख़ अब्दुल्ला और राज्य के ज़्यादातर मुसल्मान कश्मीर का भारत में ही विलय चाहते थे पर पाकिस्तान को ये बर्दाश्त ही नहीं था। 1947-48 में पाकिस्तान ने कबाइली और अपनी छद्म सेना से कश्मीर में आक्रमण करवाया और क़ाफ़ी हिस्सा हथिया लिया। उस समय प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने मोहम्मद अली जिन्नाह से विवाद जनमत-संग्रह से सुलझाने की पेशक़श की, जिसे जिन्ना ने उस समय ठुकरा दिया। महाराजा हरि सिंह ने शेख़ अब्दुल्ला की सहमति से भारत में कुछ शर्तों के तहत विलय कर दिया। भारतीय सेना ने जब राज्य का काफ़ी हिस्सा बचा लिया था, तब इस विवाद को संयुक्त राष्ट्र में ले जाया गया। संयुक्त राष्ट्र में यह मामला आज तक नहीं सुलझ पाया है।

2019 में विधानसभा को स्थगित किये जाने से पहले जम्मू और कश्मीर में एक द्विसदनीय विधायिका थी जो विधान सभा (निचला सदन) और विधान परिषद (उच्च सदन) से मिलकर बनी थी। जम्मू और कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता था जिसे बाद में अब 5 वर्ष कर दिया गया। जम्मू-कश्मीर में अंतिम बार 2015 में विधानसभा चुनाव हुए और 2018 में भाजपा के समर्थन वापस लेने के बाद सरकार गिर गयी। अगस्त 2019 में भारत की संसद द्वारा पारित जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 ने इसे एकसदनी विधायिका में बदल दिया, साथ ही राज्य को पुनर्गठित (द्विभाजित) कर इसे एक केन्द्र-शासित प्रदेश बना दिया। इस व्यवस्था के बाद अब राज्य में पहली बार विधानसभा चुनाव होंगे। हालांकि जम्मू-कश्मीर समेत चारों राज्यों के विधानसभा चुनाव की तिथियों की घोषणा होना शेष है।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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