आज से बदल गया दण्ड विधान, तीन नये आपराधिक कानून लागू होने से दिखेगा बदलाव, सरकार पहले से ही तैयार

The penal code has changed, the implementation of three new criminal laws will bring about a change

भारत सरकार ने ब्रिटिश काल से चले आ रहे तीन आपराधिक कानूनों को बदल दिया है। 30 जून की मध्य रात्रि यानी 1 जुलाई से देश में तीन नये कानून भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) प्रभावी हो गये हैं। इन तीनों कानूनों ने भारतीय दंड संहिता (IPC), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) और साक्ष्य अधिनियम की जगह ली है। ये तीनों आपराधिक कानून भले ही देश में लागू कर दिये गये हैं, लेकिन सरकार की चुनौतियां अभी भी कम नहीं है। मोदी सरकार ने जब इन तीनों कानूनों को सदन से पास कराया था, तब विपक्ष की स्थिति सदन में कमजोर थी, लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में विपक्ष मजबूत होकर उभरा है, इसलिए वह इन तीनों कानूनों को लेकर सरकार को न सिर्फ घेर रहा है, बल्कि सदन में इस पर चर्चा कराने की मांग भी कर रहा है।

केन्द्र सरकार ने आपराधिक कानूनों में क्या-क्या किये है बदलाव?

  • IPC में कुल 511 धाराएं हैं। BNS लागू होने के बाद इसमें 356 धाराएं होंगी। इनमें 175 धाराएं बदली गयी हैं और 8 नई धाराएं जोड़ी गयी हैं। BNS में IPC की 22 धाराओं को पूरी तरह खत्म किया गया है।
  • CrPC की जगह लेने वाले BNSS ने ली है जिसमें कुल 533 धाराएं रह गयी हैं। इसमें 160 धाराओं को बदला गया है और 9 नयी धाराएं जुड़ी हैं। पुरानी 9 धाराओं को पूरी तरह खत्म किया गया है।
  • इन कानूनों के तहत आतंकवादी गतिविधियों और मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं को नये तरीके से परिभाषित किया गया है।
  • भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 113 के तहत ऐसे कृत्य शामिल हैं, जो भारत की एकता अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा आर्थिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हैं या किसी समूह में आतंक फैलाते हैं।अब आतंकवाद से प्रभावित जम्मू-कश्मीर में आतंक के खिलाफ लड़ाई निर्णायक मोड़ लेगी, क्योंकि पुलिस को अब ऐसे मामले में अलग-अलग कानूनों की किताबें नहीं खंगालनी पड़ेगा। इससे आतंकियों या उनके मददगारों के खिलाफ कार्रवाई में और बल मिलेगा। इन मामलों में जांच करने वाले अधिकारी के साथ ट्रायल में भी मदद मिलेगी। पहले आतंकवाद को पोषित करने में शामिल लोग कानून में बचाव के रास्ते का इस्तेमाल कर लेते थे, लेकिन अब नए कानून में इन बचाव के रास्तों को बंद कर गया है।
  • वहीं मॉब लिचिंग की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए इसमें अधिकतम सजा मृत्युदंड रखी गई है, जिससे इसके खिलाफ कार्रवाई तेज होगी।

आपराधिक कानूनों को लागू करने के लिए सरकार की तैयारी

ऐसा नहीं है कि केन्द्र सरकार ने सिर्फ कानूनों के नाम और कुछ धाराओं में कुछ परिवर्तन भर किया है। इन तीनों कानूनों को लागू करने के लिए जो व्यावहारिक जरूरतें हैं, उसे भी पूरा करने के प्रयास किया है। इसके लिए सरकार ने पुलिस अधिकारियों, न्यायिक अधिकारियों और इससे जुड़ी सेवाओं के 6 लाख से ज्यादा लोगों को नए कानूनों की ट्रेनिंग दी है। बता दें कि पिछले 6 महीने से अधिकारियों को आधुनिक तकनीक के साथ जांच करने और सुविधाओं के साथ पुख्ता सबूत जुटाने की ट्रेनिंग दी जा रही है। राज्य सरकारों के न्याय और गृह विभाग, जेल, अभियोजन अधिकारी, कानून के छात्र, शिक्षा विभाग, महिला और बाल विकास विभाग और पुलिस से जुड़े अधिकारियों को ये ट्रेनिंग मिली है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने तकनीकी को सुविधाजनक बनाने के लिए अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम (CCTNS) में 23 बदलाव किये गये हैं। इतना ही नहीं, पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (BPRD) ने पुलिस, जेलों, अभियोजकों, न्यायिक अधिकारियों, फोरेंसिक विशेषज्ञों और केंद्रीय पुलिस संगठनों की क्षमता निर्माण के लिए 13 मॉड्यूल विकसित किए हैं।

कानूनों को लेकर क्या भ्रम की स्थिति भी उत्पन्न होगी?

यहां एक सवाल यह उठता है कि 1 जुलाई से पहले किये गये अपराध पर मुकदमा किस आधार पर चलेगा? जैसे, अगर अपराध 1 जुलाई से पहले किया गया तो किस आधार के अन्तर्गत केस चलेगा, नये या पुराने? कानून विशेषज्ञ बताते हैं कि ऐसे में पुराने कानूनों के तहत केस दायर किया जाएगा। भले ही यह नए आपराधिक कानूनों के लागू होने के बाद रिपोर्ट/पंजीकृत किया गया हो। ऐसा इसलिए है, क्योंकि जब अपराध हुआ (1 जुलाई से पहले) तब नए कानून मौजूद नहीं थे। उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति की हत्या 1 जुलाई से पहले की गई थी, तो मामला पुराने कानूनों (आईपीसी की धारा 302) के तहत दर्ज किया जाएगा, न कि नए कानूनों के तहत।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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