International Yoga Day 2024: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जम्मू-कश्मीर दौरे पर हैं। 21 जून यानी अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस पर पीएम नरेन्द्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर में ही योग दिवस मनाया और योग करके पूरी दुनिया को स्वस्थ रहने का संदेश दिया। पीएम मोदी जम्मू-कश्मीर दौरे से पहले भी कश्मीर के साथ देश के युवाओं को योग पर संदेश दिया है। इसमें कोई शक नहीं है कि प्रतिवर्ष 21 जून को दुनियाभर के 170 से भी ज्यादा देश में मनाये जाना वाला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पीएम मोदी की ही देन है। संयुक्त राष्ट्र ने 11 दिसंबर 2014 को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की स्वीकृति दी थी। इसके बाद वैश्विक स्तर पर पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया। इस वर्ष पूरी दुनिया ‘स्वयं और समाज के लिए योग’ थीम पर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मना रही है।
योग भारत की प्राचीन परम्परा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से 2015 में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की शुरुआत हुई थी, किंतु योग भारत की प्राचीन विधा है। देश में कब से योग दिवस मनाया जा रहा है, इसकी समय-सीमा तय करना तो असम्भव है, लेकिन समझा जा रहा है कि मानव और योग का पांच हजार वर्ष पुराना नाता है। योग की शुरुआत का श्रेय भगवान शिव और गुरु दत्तात्रेय को जाता है, लेकिन इसकी व्यवस्थित रूप से शुरुआत महर्षि पतंजलि ने की थी। महर्षि पतंजलि ने अभ्यास तथा वैराग्य द्वारा मन की वृत्तियों पर नियंत्रण करने को ही योग बताया था। हिंदू धर्म शास्त्रों में भी योग का व्यापक उल्लेख मिलता है।
भगवद्गीता और कृष्ण का योग से नाता
भगवान कृष्ण के अनुसार मोक्ष मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य है और इसे योग के मार्ग पर चलकर प्राप्त किया जा सकता है। भगवद गीता में, श्रीकृष्ण बताते हैं कि योग केवल शारीरिक आसन या श्वास अभ्यास के बारे में नहीं है, बल्कि यह जीवन के प्रति एक समग्र दृष्टिकोण है जिसमें शरीर, मन और आत्मा का सामंजस्य शामिल है। वे कहते हैं, “योग स्वयं की, स्वयं के माध्यम से, स्वयं तक की यात्रा है” भगवान कृष्ण इस बात पर जोर देते हैं कि योग का अंतिम लक्ष्य आत्म-साक्षात्कार या सच्चे आत्म की प्राप्ति है। वे कहते हैं कि मानव आत्मा या आत्मा अमर और दिव्य है, और योग के माध्यम से, कोई भी व्यक्ति सर्वोच्च सत्ता या ब्रह्म के साथ आत्मा की एकता का अनुभव कर सकता है। भगवद गीता में भगवान कृष्ण योग के विभिन्न मार्गों और उनके महत्व के बारे में बताते हैं। वे योग के तीन मुख्य मार्गों का वर्णन करते हैं: कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग। कर्म योग निस्वार्थ कर्म का मार्ग है, भक्ति योग भक्ति का मार्ग है और ज्ञान योग ज्ञान का मार्ग है।
विवेकानन्द ने दुनिया को दिया योग का ज्ञान
योग भारत के पास प्रकृति की अमूल्य धरोहर है। इसका साक्षात्कार स्वामी विवेकानंद ने भी अपने शिकागो सम्मेलन के भाषण में सम्पूर्ण विश्व को योग का संदेश दिया था। स्वामी विवेकानन्द ने दुनिया को बताया-
- भक्ति योग: व्यक्तिगत ईश्वर के प्रति समर्पण और प्रेम के माध्यम से दिव्यता की प्राप्ति होती है।
- कर्म योग: वह तरीका जिसमें मनुष्य कार्य और कर्तव्य के माध्यम से अपनी दिव्यता का एहसास करता है।
- ज्ञान योग: ज्ञान के माध्यम से मनुष्य की अपनी दिव्यता की प्राप्ति होती है।
- राज योग: मन पर नियंत्रण के माध्यम से दिव्यता की प्राप्ति होती है।
1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद को संबोधित करके सनसनी फैला दी थी। योग के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए, उन्हें एक अमेरिकी प्रेस ‘द न्यूयॉर्क क्रिटिक’ द्वारा ‘दिव्य अधिकार से वक्ता’ के रूप में सम्मानित किया गया था। उन्होंने मोक्ष प्राप्त करने के लिए अपने 4 योग के ज्ञानपूर्ण शब्दों का प्रसार करते हुए 4 वर्षों तक अमेरिका का दौरा किया और मूल भारत में एक राष्ट्रीय नायक बन गए।
बाबा रामदेव का अतुल्य योगदान
आज देश ही नहीं विदेशों में योग का जो भी प्रचार-प्रसार हुआ है, उसमें निस्संदेह योग गुरु स्वामी रामदेव का योगदान अतुलनीय है। योग विद्या को घर-घर तक पहुंचाने के बाद ही इसका व्यापक प्रचार-प्रसार संभव हो सका और आमजन योग की ओर आकर्षित होते गए। देखते ही देखते कई देशों में लोगों ने इसे अपनाना शुरू किया।
शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य देने में योग मददगार
आज यह सिद्ध हो गया है कि योग न कई गंभीर बीमारियों से छुटकारा दिलाने में मददगार साबित होता है बल्कि मानसिक तनाव को खत्म कर आत्मिक शांति भी प्रदान करता है। यह ऐसी साधना, जो बिना किसी दवा के शारीरिक एवं मानसिक बीमारियों का इलाज करने में सक्षम है। यह मस्तिष्क की सक्रियता बढ़ाकर दिनभर शरीर को ऊर्जावान बनाए रखता है। यही कारण है कि अब युवा एरोबिक्स व जिम छोड़कर योग अपनाने लगे हैं।
21 जून को ही योग दिवस क्यों?
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून को मनाने की वजह है। हम सभी जानते हैं कि 21 जून को उत्तरी गोलार्द्ध पर दिन सबसे बड़ा होता है। इस दिन को ग्रीष्म संक्रांति कहते हैं। भारतीय संस्कृति के नजरिये से देखें तो ग्रीष्म संक्रांति के बाद सूर्य दक्षिणायन हो जाता है तथा यह समय आध्यात्मिक सिद्धियां प्राप्त करने में लाभकारी माना गया है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी योग के महत्व को स्वीकारने लगा है। इसलिए स्वस्थ जीवन जीने के लिए जरूरी है कि योग को अपनी दिनचर्या का अटूट हिस्सा बनाना बेहतर होगा।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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