अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की तस्वीर अब पूरी तरह से साफ हो गयी है। अमेरिका में डेमोक्रेट उम्मीदर हैरिस नहीं खिला पायी ‘कमला’ क्योंकि रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड का ‘ट्रंप कार्ड’ खूब चला। भारतीय मूल की कमला हैरिस के चुनाव हार जाने से भारत में थोड़ी निराशा जरूर है। क्योंकि अगर वह राष्ट्रपति चुनाव जीत जाती तो यह न सिर्फ अमेरिका के इतिहास में ऐसी पहली घटना होती कि कोई महिला वहां की राष्ट्रपति बनती, बल्कि भारतीय मूल का की व्यक्ति दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश की राष्ट्रपति बनता।
खैर राष्ट्रपति चुनाव परिणाम स्पष्ट हो चुके हैं। डोनाल्ड ट्रम को पूर्ण बहुमत मिल गया है। अमेरिका में कुल 538 सीटे हैं और बहुमत का आंकड़ा 270 है। अब तक आये परिणामों में रिपब्लिकन को 295 सीटें मिली हैं। वहीं डेमोक्रेट बहुमत के आंकड़े दूर 226 सीटों तक ही सिमट गया।
खैर, फिलहाल भारत में डोनाल्ड ट्रम्प की जीत से ज्यादा कमला हैरिस की हार के चर्चे हैं। अमेरिकी चुनावी सर्वेक्षणों में कमला हैरिस ट्रम्प को टक्कर देती तो नजर जरूर आयीं, लेकिन कुछ ऐसे कारण जरूर रहे हैं जिन पर चर्चा किया जाना आवश्यक है। आवश्यक इसलिए है कि वे कारण सिर्फ कमला हैरिस से जुड़े निजी कारण नहीं, बल्कि उनका सम्बंध अंतरराष्ट्रीय असर डालने वाले कारण हैं।
अर्थव्यवस्था एक बड़ा मुद्दा रहा
अमेरिका की बात हो और अर्थव्यवस्था पर चर्चा न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। इस चुनाव देश में अर्थव्यवस्था को लोगों ने एक अहम मुद्दा माना जा सकता है। ज्यादातर अमेरिकी नागरिकों लगता है कि जो बाइडेन के कार्यकाल में देश की अर्थव्यवस्था कई उतार-चढ़ाव से होकर गुजरी है, जिसके चलते आम नागरिक प्रभावित हुए। ऐसी ही वजह 2020 के चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प के हारने के लिए जिम्मेवार रही। याद होगा जब अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव होने वाले थे तभी पूरी दुनिया को कोरोना अपने चपेट में आ गयी। अमेरिका को कोरोना को विशेष रूप से परेशान किया। अनगिनत लोगों की जानें गयीं, वह तो अलग है, अमेरिकी की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गयी। इसका खमियाजा ट्रम्प को भुगना पड़ा। क्योंकि लोग यही मान रहे थे कि ट्रम्प न तो कोरोना में देश को सम्भाल सके और नही देश की अर्थव्यवस्था को।
महंगाई भी बड़ा मुद्दा
ऐसा तो भारत में भी खूब होता है। देश के आम नागरिक को देश की अर्थव्यवस्था से भले कोई मतलब न हो, लेकिन महंगाई भी भाषा यहां खूब समझी भी जाती है और राजनीतिक तौर पर भुनायी भी जाती है। उधर, अमेरिका में जो बाइडेन सरकार को जिस समस्या ने सबसे अधिक परेशान किया वह महंगाई है। खाद्य उत्पादों के दाम में वृद्धि से अमेरिकी नागरिकों को काफी परेशानी झेलनी पड़ी। आंकड़े बताते हैं सितंबर में फरवरी 2021 से महंगाई इस वर्ष कम रही, लेकिन बाइडेन के कार्यकाल के दौरान आंकड़ा ऊपर ही बना रहा था। खास बात यह है कि खाद्य महंगाई को छोड़कर बाकी मामलों में अर्थव्यवस्था में कोई खास समस्या नहीं रही थी। महंगाई के मुद्दों को ट्रंप लगातार मंचों से उछालते रहे। उन्होंने जनता को बीते चार की तुलना आज की महंगाई से करनी चाहिए।
जो बाइडेन की उम्र ने ट्रम को जिताया
रिपब्लिकन पार्टी चुनाव में पहले जो बाइडेन के चेहरे के साथ उतरना चाह रही थी। लेकिन बाद में कमला हैरिस को आगे किया गया। इस दौरान सार्वजनिक मंचों पर जो बाइडेन अपने अजीव व्यवहार को लेकर काफी ट्रोल हुए। स्पष्ट है कि बाइडेन की अधिक उम्र होने की वजह से स्वास्थ उनका साथ नहीं दे रहा था। जिसका फायदा ट्रंप और उनके प्रचार तंत्र ने उठाया।
कमला को मैदान में उतारने में देरी
जो बाइडेन के पीछे हटने के बाद कमला हैरिस को पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया। जो बाइडेन ने ही उनके नाम को आगे बढ़ाया था। कमला हैरिस ने अपनी ओर से भरपूर कोशिश की और उनके आने के बाद से चुनावी सर्वेक्षणों में उनका असर भी काफी दिखने लगा था। जो सर्वेक्षण पहले डोनाल्ड ट्रंप की ओर झुके हुए दिख रहे थे वे बदलने लगे और मुकाबला काफी कड़ा लगने लगा था। लेकिन जुलाई में राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने के बाद कमला हैरिस के लिए यह बहुत ही बड़ा काम था कि सभी राज्यों में जाकर लोगों को यह बताया और समझाया जा सके कि वे कैसे एक बेहतर राष्ट्रपति साबित होंगी। हालांकि उन्होंने इस चुनौती को अच्छे नहीं पूरी कर पाईं।
अवैध इमीग्रेशन का मुद्दे ने पहुंचाया खासा नुकसान
अमेरिका में अवैध इमीग्रेशन का मुद्दा इस चुनाव में लोगों के बीच भावनात्मक मुद्दा बन गया। इस मुद्दे को ट्रंप की तरफ से जोर-शोर से उठाया गया। उन्होंने ग्रेट अमेरिका का नारा दिया। उन्होंने कहा कि बाइडेन प्रशासन पर आरोप लगाया कि अवैध इमीग्रेशन को ढिलाई बरती, लोगों की मदद के नाम पर देश का पैसा बाहरी देशों पर लुटाया है।
हिन्दुत्व मुद्दे पर डेमोक्रेट का ढुलमुल रवैया
अगर कहा जाये कि हिन्दुत्व मुद्दे ने डेमोक्रेट उम्मीदवार को हराने में बड़ा रोल निभाया तो यह कहना गलत नहीं होगा। हाल के दिनों की अंतरराष्ट्रीय घटनाओं पर नजर दौड़ाये तो बांग्लादेश में जिस प्रकार हिन्दुओं पर अत्याचार किये गये। पाकिस्तान से गाहे बगाहे हिन्दुओं पर अत्याचार की खबरें आती रहती हैं, कनाडा में हिन्दुओं और हिन्दू मंदिरों पर खालिस्तानियों के हमले पर देश-दुनिया पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं भी हुईं। इस मुद्दे पर राष्ट्रपति जो बाइडेन की प्रतिक्रिया तो कोई खास नहीं रही, आश्चर्य की बात यह कि खुद को भारतीय प्रचारित करने वाली कमला हिन्दू मुद्दे पर मौन रहीं। अमेरिका में भी बड़ी संख्या में हिन्दू रहते हैं और अपनी आस्था के साथ पूरी श्रद्धा से जुड़े भी रहते हैं। शायद डेमोक्रेट का रवैया हिन्दू आबादी को चुभ गया। उधर, डोनाल्ड ट्रम्प ने मौका देख कर चुनाव से ठीक पहले खुद को ‘हिंदुओ की आवाज‘ बनाने के रूप में प्रचारित करके ‘मौके पर चौका’ मार दिया।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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