प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बुधवार को बिहार दौरे पर हैं। इस दौरे पर प्रधानमंत्री देश को नालंदा विश्वविद्यालय का पुराना गौरव लौटाने की शुरुआत करने वाले हैं। बिहार के राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय के जो नया परिसर बना है, उसका उद्घाटन कर पुरानी परम्परा की नयी शुरुआत करेंगे।
बता दें कि 2016 मे नालंदा के भग्नावशेष को संयुक्त राष्ट्र ने विरासत स्थल घोषित किया था। विश्वविद्यालय की परिकल्पना भारत और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) देशों के बीच एक संयुक्त सहयोग के रूप में की गई है। इस उद्घाटन समारोह में 17 देशों के मिशन प्रमुखों सहित कई प्रतिष्ठित गणमान्य शामिल होंगे।
नये विश्वविद्यालय परिसर में क्या-क्या है?
नालंदा विश्वविद्यालय के नवीन परिसर में 40 कक्षाओं वाले दो शैक्षणिक ब्लॉक हैं, जिनकी कुल बैठने की क्षमता लगभग 1900 है। इसमें 300 सीटों की क्षमता वाले दो सभागार हैं। इसमें लगभग 550 छात्रों की क्षमता वाला एक छात्र छात्रावास है। इसमें अंतरराष्ट्रीय केंद्र, 2000 व्यक्तियों तक की क्षमता वाला एम्फीथिएटर, फैकल्टी क्लब और खेल परिसर सहित कई अन्य सुविधाएं भी हैं।
यह परिसर एक ‘नेट जीरो’ ग्रीन कैंपस है। यह सौर संयंत्र, घरेलू और पेयजल शोधन संयंत्र, अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग के लिए जल पुनर्चक्रण संयंत्र, 100 एकड़ जल निकाय और कई अन्य पर्यावरण अनुकूल सुविधाओं के साथ आत्मनिर्भर रूप से कार्य करता है।
गौरवशाली रहा है नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास से गहरा संबंध है। लगभग 1600 वर्ष पूर्व स्थापित किए गए मूल नालंदा विश्वविद्यालय को विश्व के प्रथम आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक माना जाता है। यह बिहार ही नहीं भारतवर्ष का वैभव रहा है। नालंदा प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था। महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे। इस महान विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं। 13वीं सदी तक इस विश्वविद्यालय का पूर्णतः अवसान हो गया। मुस्लिम इतिहासकार मिनहाज़ और तिब्बती इतिहासकार तारानाथ के वृत्तांतों से पता चलता है कि इस विश्वविद्यालय को तुर्कों के आक्रमणों से बड़ी क्षति पहुंची। तारानाथ के अनुसार तीर्थिकों और भिक्षुओं के आपसी झगड़ों से भी इस विश्वविद्यालय की गरिमा को भारी नुकसान पहुंचा। इसपर पहला आघात हुण शासक मिहिरकुल द्वारा किया गया। 1199 में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इसे जला कर पूर्णतः नष्ट कर दिया।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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